ये नगर देखना जिस रोज़ भी अपना होगा
ये नगर देखना जिस रोज़ भी अपना होगा हमको हर शख़्स से बच-बच के गुज़रना होगा हुस्ने-शोहरत भी फ़रेबी है उजाले की तरह अपने साए से भी हर पल हमें डरना होगा मोतियों की तरह अल्फ़ाज़ ढलेंगे लेकिन सीप की शक्ल में अहसास को ढलना होगा उम्र भर हमने दरख्तों को गिराया … Continue reading ये नगर देखना जिस रोज़ भी अपना होगा
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